आज भारतीय रुपया American Dollar के मुकाबले ऐतिहासिक रूप से निचले स्तर पर आ गया है। हाल के महीनों में रुपया 84 के स्तर को भी पार कर चुका है, जो निवेशकों और देश की अर्थव्यवस्था दोनों के लिए चिंताजनक है। इस गिरावट के कई कारण हैं, जिनमें विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय शेयर बाजार से पैसा निकालना, वैश्विक तेल की कीमतों में वृद्धि, और विभिन्न भू-राजनीतिक संकट प्रमुख हैं।

भारतीय रुपया की गिरावट कारण प्रभाव और विशेषज्ञों की राय


 भारतीय रुपया की गिरावट: कारण, प्रभाव, और विशेषज्ञों की राय

1. वैश्विक बाजार में अस्थिरता: अक्टूबर 2024 में चीन ने आर्थिक सुधार हेतु प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की, जिससे कई विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार छोड़कर चीनी बाजार में निवेश करना शुरू कर दिया। अक्टूबर में, भारतीय शेयर बाजार से 90,000 करोड़ रुपए से अधिक का विदेशी निवेश निकाला गया। यह निवेश प्रवाह में भारी गिरावट का कारण बना, जिससे रुपया कमजोर हुआ।

2. तेल की कीमतें और आयात पर निर्भरता: भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए लगभग 80% तेल का आयात करता है। हाल ही में, पश्चिम एशिया में जारी तनाव के कारण ब्रेंट क्रूड की कीमतें बढ़कर 74 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई हैं, जिससे डॉलर की मांग में वृद्धि हुई। कच्चे तेल की ऊंची कीमतें आयातकों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो रही हैं, और इसके चलते रुपये पर दबाव बढ़ा है।

3. American Dollar की मजबूती: अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरें बढ़ाने के फैसले के बाद डॉलर की मांग बढ़ी है, जिससे अन्य मुद्राओं की तुलना में डॉलर मजबूत हुआ। इस वजह से रुपया कमजोर हुआ है, और आने वाले दिनों में यह और अधिक कमजोर हो सकता है।

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4. RBI का हस्तक्षेप: भारतीय रिजर्व बैंक ने रुपये को स्थिर रखने के लिए कई बार विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप किया है। हालाँकि, विदेशी मुद्रा भंडार का सीमित होना और भारी विदेशी निकासी के कारण आरबीआई का हस्तक्षेप पूरी तरह सफल नहीं हो पा रहा है।

वित्त मंत्रालय और RBI का बयान

वित्त मंत्रालय ने इस गिरावट को वैश्विक आर्थिक अस्थिरता से जोड़ते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाए रखने पर जोर दिया है। आरबीआई ने कहा है कि रुपये को स्थिर रखने के लिए आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं और दीर्घकालिक नीतियों पर भी काम हो रहा है ताकि बाहरी अस्थिरता का प्रभाव कम हो सके।


निष्कर्ष

इस गिरावट का सीधा असर आयातकों और आम उपभोक्ताओं पर पड़ेगा, जिससे महंगाई बढ़ सकती है। दूसरी ओर, निर्यातकों को इसका लाभ हो सकता है, परंतु यह देश की व्यापक आर्थिक नीति पर निर्भर करता है। वर्तमान स्थिति में, सरकार और आरबीआई को मिलकर इस अस्थिरता से निपटने के लिए दीर्घकालिक योजनाएं तैयार करने की आवश्यकता है।


अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. भारतीय रुपया गिरने का कारण क्या है?

भारतीय रुपये की गिरावट का मुख्य कारण व्यापार घाटा, महंगाई, और अमेरिकी डॉलर का मजबूत होना है। इसके अलावा, अमेरिका में फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि जैसी आर्थिक नीतियां विदेशी निवेशकों को भारत से बाहर निकालकर अमेरिका की ओर आकर्षित करती हैं, जिससे रुपया कमजोर होता है।


2. रुपये की स्थिरता में RBI की क्या भूमिका है?

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप कर रुपये में अत्यधिक उतार-चढ़ाव को कम करता है, जो कि विदेशी मुद्रा की खरीद-बिक्री के माध्यम से किया जाता है। इसके अलावा, RBI ब्याज दरों का प्रबंधन करता है और महंगाई पर भी नजर रखता है, जो रुपये की स्थिरता में अप्रत्यक्ष रूप से सहायक होते हैं।


3. कमजोर रुपये का आम लोगों पर क्या असर पड़ता है?

रुपये में गिरावट से आयातित वस्तुओं की लागत बढ़ जाती है, जिससे महंगाई भी बढ़ने लगती है। खासकर तेल जैसी जरूरी चीजों की कीमतें बढ़ने लगती हैं, जिससे आम आदमी की खरीद क्षमता प्रभावित होती है और जीवन यापन महंगा हो जाता है।