गया, बिहार में हाल ही में एक अनोखी शादी ने सभी का ध्यान आकर्षित किया। इस शादी में 70 वर्षीय मोहम्मद कलीमुल्लाह नूरानी ने 25 वर्षीय रेशमा परवीन से निकाह किया। यह शादी शेरघाटी अनुमंडल के आमस प्रखंड के हमजापुर गांव में संपन्न हुई। इस शादी ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया क्योंकि दूल्हा और दुल्हन की उम्र में बड़ा अंतर था। यह शादी शेरघाटी अनुमंडल के आमस प्रखंड के हमजापुर में हुई थी।
शादी की पृष्ठभूमि
मोहम्मद कलीमुल्लाह नूरानी, जिनकी पहली पत्नी का कुछ साल पहले निधन हो चुका था, ने शादी का निर्णय लिया क्योंकि उन्हें अपने घर की देखभाल के लिए किसी की जरूरत थी। उनके दोनों बेटे शादीशुदा हैं और घर से दूर रहते हैं। कलीमुल्लाह का मानना है कि उम्र के इस पड़ाव पर उनके जीवन में एक साथी का होना जरूरी है, जो उनके घर और जीवन की जिम्मेदारियों को साझा कर सके।
रेशमा परवीन ने इस शादी पर सहमति जताई और कहा कि उन्हें इस उम्र के अंतर से कोई समस्या नहीं है। उन्होंने कहा कि वे कलीमुल्लाह की देखभाल करना चाहती हैं और उन्हें एक अच्छा जीवन साथी मानती हैं।
शादी का आयोजन
शादी का आयोजन गांव के ही एक बड़े मैदान में किया गया था, जहां निकाह की रस्म मौलवी के द्वारा पूरी की गई। इस अवसर पर सैकड़ों स्थानीय लोग उपस्थित थे, जिन्होंने इस अनोखी शादी का गवाह बना। शादी के बाद कलीमुल्लाह और रेशमा अपने गांव बैदा चले गए, जहां उन्होंने अपना नया जीवन शुरू किया।
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समाज की प्रतिक्रिया
इस शादी ने स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर बहुत ध्यान आकर्षित किया। लोगों के बीच इस शादी को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं आईं। कुछ लोगों ने इसे एक साहसिक और सच्चा प्रेम का उदाहरण माना, जबकि कुछ ने इसे आलोचना की दृष्टि से देखा।
कलीमुल्लाह का बयान
कलीमुल्लाह नूरानी ने कहा, "मुझे जीवन के इस पड़ाव पर एक साथी की आवश्यकता थी। रेशमा ने मेरी जरूरतों को समझा और मेरे साथ इस रिश्ते को निभाने के लिए तैयार हुई। यह एक व्यक्तिगत निर्णय था और हम दोनों ने इसे सहमति से लिया है।"
निष्कर्ष
यह शादी कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। यह न केवल एक व्यक्तिगत जीवन के फैसले को दर्शाती है बल्कि समाज में उम्र और विवाह को लेकर प्रचलित धारणाओं को भी चुनौती देती है। कलीमुल्लाह और रेशमा की यह अनोखी शादी हमें यह सिखाती है कि सच्चे संबंध उम्र या अन्य बाहरी मापदंडों पर आधारित नहीं होते, बल्कि दो लोगों के बीच के विश्वास और समझ पर आधारित होते हैं।
इस घटना ने यह भी स्पष्ट किया कि व्यक्ति के निजी जीवन के निर्णयों को सम्मान के साथ स्वीकार किया जाना चाहिए, चाहे वे समाज की सामान्य धारणाओं से कितना ही अलग क्यों न हों।
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