कोसी-मेची नदी इंटरलिंकिंग योजना भारत के बिहार राज्य में एक महत्वाकांक्षी और महत्वपूर्ण परियोजना है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य बिहार के उत्तरी भाग में सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण की समस्याओं का समाधान करना है। यह परियोजना देश के नदी जोड़ो कार्यक्रम का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य जल संसाधनों का अधिकतम उपयोग और जल प्रबंधन को सुधारना है।
योजना का इतिहास
कोसी-मेची नदी इंटरलिंकिंग योजना की परिकल्पना पहली बार 1990 के दशक में की गई थी। कोसी और मेची दोनों नदियाँ नेपाल से निकलती हैं और बिहार में प्रवेश करती हैं। कोसी नदी को अक्सर 'बिहार की शोक' कहा जाता है, क्योंकि यह नदी हर साल बाढ़ लाती है और बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाती है। वहीं, मेची नदी के पास जल की कमी के कारण किसानों को सिंचाई की समस्या का सामना करना पड़ता है।
योजना का उद्देश्य
- बाढ़ नियंत्रण: कोसी नदी की बाढ़ को नियंत्रित करना, जिससे हर साल होने वाले नुकसान को कम किया जा सके।
- सिंचाई: मेची नदी के सूखे इलाकों में पानी की आपूर्ति करना, जिससे कृषि उत्पादन बढ़ाया जा सके।
- जल प्रबंधन: जल संसाधनों का प्रभावी प्रबंधन करना और जल संकट को कम करना।
- पेयजल आपूर्ति: योजना के तहत पेयजल की आपूर्ति भी सुनिश्चित की जाएगी।
योजना की विशेषताएँ
- नदियों का इंटरलिंकिंग: कोसी और मेची नदियों को एक-दूसरे से जोड़ने के लिए एक नहर का निर्माण किया जाएगा।
- पानी का प्रवाह: कोसी नदी से अतिरिक्त पानी को मेची नदी में स्थानांतरित किया जाएगा।
- बाँध और बैराज: नदियों पर बाँध और बैराज का निर्माण किया जाएगा, जिससे जल की धारण क्षमता बढ़ाई जा सके।
- सिंचाई नहरें: योजना के तहत सिंचाई के लिए नहरों का निर्माण किया जाएगा, जिससे किसानों को साल भर पानी उपलब्ध हो सके।
योजना का क्षेत्रफल
कोसी-मेची नदी इंटरलिंकिंग योजना का कुल क्षेत्रफल लगभग 2.75 लाख हेक्टेयर है। यह योजना बिहार के 12 जिलों को कवर करेगी, जिसमें सुपौल, अररिया, किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार, मधेपुरा, सहरसा, मधुबनी, दरभंगा, समस्तीपुर, बेगूसराय, और खगड़िया शामिल हैं।
योजना की लागत
इस योजना की अनुमानित लागत लगभग 9000 करोड़ रुपये है। यह राशि केंद्र और राज्य सरकार द्वारा संयुक्त रूप से वित्तपोषित की जाएगी।
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समाप्ति
कोसी-मेची नदी इंटरलिंकिंग योजना बिहार के लिए एक महत्वपूर्ण परियोजना है, जो न केवल बाढ़ नियंत्रण और सिंचाई की समस्याओं का समाधान करेगी, बल्कि राज्य के आर्थिक और सामाजिक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इस योजना के सफल क्रियान्वयन से बिहार के लाखों किसानों को लाभ होगा और राज्य की जल प्रबंधन क्षमताओं में सुधार होगा।
योजना का विस्तृत विवरण
1. कोसी नदी का इतिहास और समस्याएं
कोसी नदी को 'बिहार की शोक' कहा जाता है। यह नेपाल के हिमालय से निकलती है और बिहार में प्रवेश करती है। हर साल यह नदी बाढ़ लाती है, जिससे बिहार के उत्तरी जिलों में भारी नुकसान होता है। बाढ़ के कारण कृषि, बुनियादी ढांचे और जन-जीवन पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
2. मेची नदी की समस्याएं
मेची नदी भी नेपाल से निकलती है और बिहार में प्रवेश करती है। यह नदी सूखे की समस्या से ग्रस्त है, जिससे सिंचाई के लिए जल की कमी हो जाती है। इससे किसानों को कृषि उत्पादन में भारी नुकसान होता है।
3. योजना का तकनीकी पहलू
- नहर का निर्माण: कोसी और मेची नदियों को जोड़ने के लिए एक 112 किलोमीटर लंबी नहर का निर्माण किया जाएगा।
- बाँध और बैराज: कोसी नदी पर एक प्रमुख बाँध और बैराज का निर्माण किया जाएगा, जिससे जल की धारण क्षमता बढ़ाई जा सके।
- जलाशय: नहर के साथ-साथ कई जलाशयों का निर्माण किया जाएगा, जिनमें जल संचित किया जाएगा और आवश्यकता के अनुसार छोड़ा जाएगा।
4. सिंचाई की सुविधा
इस योजना के तहत 2.75 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचाई सुविधा प्रदान की जाएगी। इससे फसलों की उत्पादकता में वृद्धि होगी और किसानों की आय में सुधार होगा।
5. पेयजल की आपूर्ति
योजना के तहत नहरों और जलाशयों के माध्यम से पेयजल की आपूर्ति भी सुनिश्चित की जाएगी। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की समस्या का समाधान होगा।
6. बाढ़ नियंत्रण
कोसी नदी पर बाँध और बैराज के निर्माण से बाढ़ की स्थिति को नियंत्रित किया जा सकेगा। इससे हर साल होने वाले नुकसान को कम किया जा सकेगा और जन-जीवन सुरक्षित रहेगा।
7. पर्यावरणीय प्रभाव
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